Showing posts with label pyar. Show all posts
Showing posts with label pyar. Show all posts

Saturday, January 28, 2017

Beti ki chah | Part2

नये पाठक पिछला अंक पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करे!
अब आगे
क्या मतलबमै समझी नही ''यारमतलब सीधा सा हैऑपरेशन कराने का आइडिया फिलहाल कैंसिलएक बार और कोशिश करते हैं शायद हमारी इच्छा पूरी हो जाएकहते हुए दीपक ने मुझे बाहों मे भर लियामाँ ने शर्मा कर मुँह फेर लिया और पूछ बैठी, “अगर अब की बार भी बेटा हुआ तो?”
जैसे  अल्ट्रासाउंड करा कर लोग लड़की का गर्भपात करा देते हैं , हम लड़के का गर्भपात करा देंगे, “ क्या गर्भ मे लड़का हुआ तो गर्भपात करा दोगे ? “ क्यूँ इसमे इतना आश्चर्य करने की क्या बात है ? गर्भ मे लड़की होने पर लोग गर्भपात कराते ही हैं क्यूंकी उन्हे लड़का चाहिएहमे लड़की चाहिएइसलिए अगर गर्भ मे लड़का हुआ तो हम गर्भपात करा देंगेलोग सुनेगे तो क्या कहेंगे ? “कहने दो क्या फ़र्क पड़ता हैबच्चे हमे पालने हैइसलिए हम यह तय करेंगे की हमे लड़का चाहिए या लड़की,  दूसरे कौन होते हैं इस मामले मे दखल देने वाले ? दीपक के इस तर्क के आगे मैं निरुत्तर हो गई थीतभी दीपक ने मुझे पकड़ कर बिस्तर पर लिटा कर बत्ती बुझा दी और मेरे अधरो पर अपने अधरो को रखते हुए फुसफुसाएअच्छे काम मे देर नही करनी चाहिएजितनी जल्दी हो वही अच्छादिनसप्ताह और महीने इसी तरह बीतने लगे,उस घटना के लगभग 6 माह बाद मेरे पीरीएड्स बंद हो गये, मैने जब दीपक को यह बात बताई तो वो मुस्कुराते हुए बोले, “इस का मतलब हमारी मेहनत का फल हमे मिलने वाला हैफल लेने से पहले बहुत कुछ करना पड़ता हैपहले तैयारी करो अस्पताल चल कर चेकअप कराने  की- "हाँ-हाँ क्यू नही"

अगले ही दिन हम अस्पताल गयेवहाँ चेकअप करने के बाद डॉक्टर ने बताया की अभी गर्भ मात्र 4 माह का है और सब कुछ ठीक-ठाक हैअभी अल्ट्रासाउंड कर गर्भ के लिंग का पता नही चल सकताहम दोनो खुशी-खुशी घर लौट आएहमारी मनोकामना जो पूरी होने वाली थीमम्मीजी को यह समझते देर  लगी की क्या बात हैउन्होने मुझ से बस , इतना ही पूछासब ठीक ठाक तो है हाँ मम्मीजी सब ठीक हैमेरे इस जवाब से वो संतुष्ट हो गई थी अब मम्मीजी पहले से भी ज़्यादा ख़याल रखने  लगी थीयह खा लोवो खा लोयह मत करोवो मत करोहर दम लगाए रहतीकभीकभी तो मुझे उनकी इन बातों पर हँसी  जाती और मै कह उठती, “अरे मम्मीजीमै पहली बार तो माँ बन नही रही हूँपहले भी 2 बेटे पैदा कर चुकी हूँहाँ-हाँ मुझे पता है पर यह मत भूल की बच्चे को जन्म देने मे हर बार माँ का नया जन्म होता है और तुझे कुछ हो गया तो मेरा बेटा तेरे गम मे जीते जी मर जाएगाफिर मेरा क्या होगा ? यह कह कर मम्मीजी हंस पड़ती और मै भी अपनी हँसी रोक  पातीइसी तरह समय हँसी खुशी बीतता रहा और अंत मे वो घड़ी  ही गई  जब मेरे गर्भ मे पल रहे भ्रूण का लिंग का पता चलना था मै और दीपक दोनो यही चाहते थे की लड़की ही होक्यूंकी मुझे यह पता था की अगर लड़का हुआ तो दीपक गर्भपात कराने से नही मानेगे  और यही कहेंगे  की शायद अगली बार लड़की होमैं अब इस गर्भ धारड़ के मे नही पड़ना चाहतीउस दिन हम सुबह सुबह ही नहाधोकर नाश्ता कर धड़कते दिल से नर्सिंग होम पहुँच बच्चों को जितना अपना परिच्छा परिणाम जानने की उत्सुकता होती है उससे कहीं ज़्यादा हम उत्सुक थे हम इतने अधीर थे की हमे लगता था की कितनी जल्दी कोई आए और हमे यह बताए की आप लड़की की माँ बनने वाली हैं,लेकिन होता सब कुछ समय से ही है ! नर्सिंग होम मे डॉक्टर के आने के बाद लगभग डेढ़-घंटे का समय अल्ट्रासाउंड मे ही लग गया ! इसके बाद हमे कमरे से बाहर जाने को कहा गया की बाहर चल कर बैठिएथोड़ी देर मे आप लोगों को बता दिया जाएगाहमारे लिए एक-एक पल बिताना भारी पड़ रहा था पर कर ही क्या सकते थेथोड़ी देर मे एक नर्स मुस्कुराती हुई कमरे से निकली और हमारे पास आकर बोलीबधाई हो मिदीपक एंड मिसेज़ दीपकआप लोग बेटे के माँ बाप बनने वाले हैं ! लाइए मेरी बखशीशयह खबर सुनकर एक ही झटके मे हमारे सपनो का महल चूर हो गया था दीपक तो सिर पकड़ कर वही बैठ गये!
क्रमशः

Wednesday, January 25, 2017

Hindi kahani - Beti ki chah

मेरी ज़िंदगी बड़े मज़े की चल रही थी, 30 बरस की छोटी सी उम्र मे मानो मुझे सब कुछ मिल गया था सुंदर सुशील कमाऊ और सब से बड़ी बात तो यह की मुझे अपनी जान से भी अधिक चाहने वाले पति दीपक मिले थे दीपक एक कंपनी मे प्रबंधक थे जहाँ से उन्हे प्रतिमाह 25 हज़ार रुपये वेतन मिलता था शादी के बाद मेरी यह इच्छा जताने पर की मै भी नौकरी करना चाहती हूँ ,ना तो मेरे पति और न ही मेरी सास ने कोई आपत्ति की थी बल्कि दीपक ने अपनी कंपनी मे कह कर मेरे लिए नौकरी का प्रबन्ध भी कर दिया था दोनो की सम्मिलित आय से घर का खर्च आराम से चल जाता था और ठीक ठाक बचत भी हो जाती थी सास ऐसी थी जो मुझे बहू नही बल्कि अपनी बेटी समझती थी और मुझे बेटी कहकर ही पुकारती थी. दीपक उनकी इकलौती औलाद थे कोई बेटी न थी वह अपनी बेटी की चाह मुझे देख कर ही पूरी करती थी ससुर गावों गाव मे रहते थे उन्हे महानगर पसंद न था अच्छी ख़ासी खेती बाड़ी थी सो वह गाव मे ही रहकर खेती संभालते थे सास यह सोचकर कि बेटेबहू अकेले कैसे महानगर मे रहेंगे हमारे साथ ही रहती थी शादी के बाद हर लड़की की इच्छा होती है, कि वह माँ बने मेरी ये इच्छा भी जल्द पूरी हो गई थी शादी के केवल 5 साल के भीतर ही मेरे दो बेटे हो गये थे, मुझ पर घर के किसी काम का कोई बोझ न था सास जिन्हे मै मम्मी जी कहकर पुकारती थी, ने कभी मुझे घर के किसी काम का बोझ महसूस ही नही होने दिया, दोनो बच्चो  को बड़ी हँसी-खुशी से संभालती थी, रोज़ सुबह 5 बजे ही उठ जाती थी, दूध लाना चाय-नाश्ता बनाना और हमारा टिफिन तैय्यार करना वो इतनी सहजता और तेज़ी से करती की स्वयं मैं चकित रह जाती, शाम का खाना मैं बनाती और सब हँसी-खुशी खाते, मम्मीजी वैसे तो रहने वाली गाव की थी पर उन्हे व्यावहारिक ज्ञान बहुत ! दूध लाना, सब्ज़ी लाना, बिजली पानी का बिल चुकाना, घरके ज़रूरत की चीज़े लाने से लेकर किराया देना आदि सभी काम वो बड़ी कुशलता से कर लेती, हम महीने के शुरू मे ही अपना वेतन लाकर उन्हे सौंप देते और निश्चित हो जाते पर वो महीना समाप्त होने के बाद बचे पैसों को मुझे लौटा देती और समझाती कि बेटा यही उम्र तो कमाने और बचाने की है, अगर मैं कहती की आप ही रख लीजिए तो वो यह कहते हुये  मना कर देती कि अपनी ज़िम्मेदारियाँ अभी से समझो उनके इतना सब करने की ही वजह थी, कि वो अगर गावो 10 दिन के लिए भी जाती तो हम परेशान हो जाते, दीपक तो उन्हें ट्रेन मे बिठाने के साथ वापसी का टिकट  भी खरीद कर दे देते!

पास पड़ोस की औरतें कभी-कभी मम्मीजी को भड़काती, ''अरे, माँ जी, यह उम्र आपकी काम करने की थोड़ी न है, थोडा पूजा-पाठ भजन-कीर्तन किया कीजिए, मम्मीजी तडसे जवाब देती, अपना घर संभालना ही सबसे बड़ा काम है. मैं पूजा-पाठ के ढकोसले मे नही पड़ती और न ही मुझे स्वर्ग जाने की लालसा है. तुम्ही लोग पुण्य कमाओ और स्वर्ग मे अपनी जगह पक्की करो. सब निरुत्तर होजाते इतना सब करने के बावजूद मम्मीजी कभी कोई फरमाइश नही करती उल्टे वो हम सब की ज़रूरतों का धयान रखती थी इसलिए मैं उनके लिए ज़रूरत की सभी चीज़े उनके मना करने पर भी खरीद लाती! कभी कभी मैं कहती थी की मम्मीजी, आप थक गई होंगी, लाइए यह काम मै कर दूं तो वो हंसते हुए कहती की अभी मेरी उम्र 50 की है, घर के काम करने से कोई थक थोड़ी न जाता है! मैं निरुत्तर हो जाती, ऐसे ही हँसी-खुशी दिन बीत रहे थे की दीपक एक रात बोले- संगीता 2 बेटे हो गये हैं! बच्चे पैदा करने से ज़्यादा महत्वपुर्य है, उनकी अच्छी देख-भाल और परवरिश करना उन्हे पढ़ा लिखा कर इस लायक बनाना की वो बड़े हो कर अपने पैरों पर खड़े होकर कमा खा सकें! आज के ज़माने मे दो बच्चे काफ़ी हैं! तुम्हारी अगर सहमति हो तो मैं आपरेशन करा लूँ, बात तो तुम सही कह रहे हो, तुम्हारी राय ही मेरी राय है. पर... “पर क्या”?
मेरी
शुरू से ही यह इच्छा रही थी की मेरे एक बेटी भी हो बेटी ही माँ की सुख दुख की सहभागी होती है और वही माँ का दुख भी समझ पाती है, बेटी बड़ी हो जाने पर माँ की सहेली की भूमिका निभाती हैबेटी ना हो तो समझो घर का आँगन सूना ही रहता है. पर दोनो बार बेटे ही हुए. एक बेटी होती तो अच्छा होता. पर अब किया भी क्या जा सकता है. यार तुम तो बड़ी छिपी रुस्तम निकली, हमारे 2-2 बेटे हो गए पर तुमने अपने दिल की बात आज तक नही बताई, सच कहूँ तो तुम ने मेरे मुँह की बात कह दी, 2 बेटे हो और एक भी बेटी हो तो यह अच्छी बात नही है, हमारे बेटी होगी तो वो तुम्हारी ही तरह सुंदर  होगी, आख़िर हमारी यह इच्छा भी अधूरी क्यूँ रहे? क्रमशः