Tuesday, January 31, 2017

Beti ki chah | Last Part

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मेरा चेहरा भी उतर गया था ! नर्स कुछ समझ ही पाई की माजरा क्या है ? और वो पूछ ही बैठी , क्या बात है? यह खबर सुन  कर आप लोगों को खुशी नही हुई ! तबीयत ठीक नही है क्या ? बड़ी मुश्किल से मै उसे बता पाई, दरअसल हम लड़की चाहते थे ! लड़के तो 2 हमारे पास पहले से हैं, क्या ? आप लोग लड़की चाहते हैं ! यहाँ तो लोग आते हैं यह पता करने की लड़का होगा या  नही और लड़की होने की खबर मिलते ही गर्भपात करा देते है ! मै ने तो पहली बार ऐसा देखा  कमाल है भाई, कहती हुई नर्स कंधे उचका कर बाहर निकल गई! नर्स के जाने के बाद दीपक बोले, लड़का या लड़की होना अपने बस मे तो है नही ! ऐसा करता हूँ की डॉक्टर से गर्भपात की बात करता हूँ, जो काम करना है करना है! बेकार का समय खराब करने से क्या फ़ायदा ?
नर्सिंग होम वालों को क्या चाहिए, पैसा वे गर्भपात करने को तुरंत तय्यार हो गये ! मात्र  2 घंटे मे हमे अनचाहे गर्भ से छुटकारा मिल गयामुझे काफ़ी कमज़ोरी महसूस हो रही थी और चक्कर भी आरहे थे! दीपक ने एक टेक्सी बुलाई और मुझे पकड़ कर बिठाया औरथोड़ी ही देर मे हम अपने घर पहुँच गएथे ! मेरी हालत देख कर मम्मीजी को सब कुछ समझते देर लगी और वो मेरी देख-भाल मे जुट गई ! उन्होने तत्काल कुछ पूछना ठीक समझा! उनकी देखभाल से मेरी हालत 3-4 दिन मे ही काफ़ी सुधर गई और मै उठकर अपना सब काम करने की हालत मे होगई थी! दीपक भी दफ़्तर जाने लगे थे! उस दिन दोपहर मे मम्मीजी ने बात कुछ इस तरह शुरू की, अच्छा किया गर्भपात करा दिया लड़की थी कौन लड़की के पछदे मे पड़ेउसे पैदा करो पालोपोसो और फिर पढ़ा लिखा कर घर उजाड़ कर दहेज दो! ज़िंदगी भर देते रहो फिर भी कम ही रहता है! लड़की नही लड़का था, मेरे मुँह से निकला! लड़का था फिर क्यूँ गर्भपात करा दिया ? कोई गड़बड़ थी क्या ? ''गड़बड़ कोई नही थी, लड़के हमारे पास पहले से 2 थे अब हम एक लड़की चाहते थे! इसलिए लड़का हाथ से गँवा दिया तुम लोगों का दिमाग़ तो नही खराब हो गया, मम्मीजी का स्वर एकदम अचानक तेज़ और तीखा हो चला था! उनका यह रूप देख कर मै तो डर ही गई और जान बचाने की गरज से जा कर अपने कमरे मे लेट गई! मम्मीजी न जाने कितनी देर तक गुस्से मे बड़बड़ाती रही ! रोज़ की तरह शाम को मै रसोई मे घुसकर खाना बनाने लगी! दीपक के दफ़्तर से लौट कर आने के बाद मैने सारी बाते बताई सुनने के बाद दीपक हंसते हुए बोले, चिंता मत करो, मै सब संभाल लूँगा और मम्मीजी के कमरे मे बाते करने चले गये, रात खाना खाने के लिए मै बुलाने गई तो माँ बेटे खाने साथ-साथ आए पर एक तरह का आबोलापन ही हावी रहा खाना खाने के बाद दीपक फिर मम्मी जी के पास ही चले गये और रात को कब लौटे पता ही ना चला!
सुबह मेरी हिम्मत पड़ी की मै मम्मीजी से कुछ कहूँ या मांगू, मैं अपनी मर्ज़ी से उठी और रसोई मे जाकर अपना नाश्ता ले आई दीपक के चले जाने के बाद मम्मीजी मेरे कमरे मे आई और बोलीबेटी तुम मुझ से नाराज़ हो, अरे पगली माँ की बात का कोई बुरा मानता है क्या? कल गुस्से मे जाने मैं क्या- क्या कह गई? नही मम्मीजी मैं नाराज़ क्यूँ  होने लगी? आप से नाराज़ हो कर मै कहाँ जाऊंगी? मेरे मुँह से स्वर फूटे. कल रात को मुझे दीपक ने समझाया की अब बच्चे भगवान की देन नही रह गये! बच्चे पैदाकरना अब आदमी के हाथ मे हो गया है! अब लड़का-लड़की मे कोई फ़र्क भी नही रह गया है, हमारे 2 लड़के पहले से ही थे अब हमे लड़की चाहिए थी ! सो हम ने लड़के का गर्भपात करा दिया  फिर लड़कियाँ नही होंगी तो लड़के कहाँ से होंगीमाँ फिर तुम भी तो किसी की बेटी थी अगर तुम होती तो मैं कहाँ से होता? और उस के इस वाक्य ने मुझे निरुत्तर कर दिया और मुझे अपनी ग़लती का एहसास हो गया, तुम लोगो ने जो किया ठीक ही किया, बेटी कल मैने तुम्हे गुस्से मे जो कुछ कहा उसके लिए मैं बहुत शर्मिंदा हूँ, कहते हुए मम्मी जी के आँखों मे आँसू गये!

अरे मम्मी जी यह आप क्या कह रही है? शर्मिंदा तो हमे होना चाहिए की हमने आपसे बिना पूछे  इतना बड़ा निर्णय ले लिया, अगर हमने आपसे पहले ही बात कर ली होती तो यह नौबत ना ही आती! कृपया हमे माफ़ कर दीजिए, मेरा इतना कहना था की मम्मी ने आगे बढ़ कर मुझे गले लगा लिया और बहते आँसुओ मे सारे गले शिकवे बह गये!
-समाप्त

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