इस कलिकाल मे ईश्वर के रूप मे यदि कोई परमाणत है तो वो डॉक्टर है क्यूँकि सबसे ज़्यादा आदर और सम्मान इन्ही का होता है सबसे ज़्यादा भेट या दान इन्ही को चढ़ाया जाता है मज़े की बात यह कि भूत भविष्य या वर्तमान का ग्याता डॉक्टर को ही माना जाता है! मंदिरों के बाद यदि हर रोज़ भीड़ कही लगती है तो इनके क्लिनिक या अस्पतालों मे ईश्वर के बाद यदि किसी पर लोग श्रधा भक्ति व विश्वास रखते हैं तो डॉक्टर पर कुछ नास्तिक भी होते हैं पर वे भी पूरी तरह से इन का विरोध नही करते इनको यदि चिढ़ है तो इन चिकित्सको के अन्य अवतारों मे से जो प्रेम-समपर्ण के भाव सन्निहित रखते हैं हमारे एक मित्र ने बताया की एक बार मज़ाक-मज़ाक मे उनका मन डॉक्टर का टैस्ट लेने का हुआ और वे चार दोस्तों के साथ क्लिनिक मे घुस गये! नंबर आने पर डॉक्टर ने पूछा क्या हुआ? डॉक्टर साहब, कुछ समझ मे नही आरहा है जाने कैसा लग रहा है, अजीब सा फील हो रहा है! इतना बताना उन अंतर्यामी के लिए पर्याप्त था, जबकि गौर से देखे तो उन मित्र ने डॉक्टर को कुछ नही बताया था! डॉक्टर ने तुरंत नाड़ी देखी, घड़ी देखी नाड़ी पकड़े-पकड़े शून्य मे देखा एक लघु टार्च उठाई, आँखों मे आँखे डालकर देखा जीभ देखी की कही चट्टू तो नही है!
आँखो मे बेशर्मी देखी या क्या, पता नही पेट देखा कि भरा है या नही, कि कही भुक्कड़ तो नही आ गया, जो फीस ही न दे सके फिर आला (स्टेथस्कोप) लगा कर आगा-पीछा देखा! यह भी समझना मुश्किल लग रहा था कि हमारा आगा-पीछा देख रहे है या अपना या अपनी फीस चुकाने का दमखम इतनी क्रिया के बाद एक पैड खीचा महंगे पेन से एक कालम मे कुछ कठिन व अकल्पनीय बीज मंत्र लिखे, फिर ईश्वरीय शपथ का चिन्ह
बना कर दवा लिखी और उनका पूजन ढंग बताया पचास रुपय डॅक्सिनल फीस ली तीन
न ही डॉक्टर ने बताया कि क्या हुआ है यह काहे की दवा दी है, क्यूँ दी है! उन्हे अपनी फीस से मतलब था हमारे मित्र को डॉक्टर से मज़ाक का मतलब था, हालाँकि मज़ाक-मज़ाक मे भी डॉक्टर ही फ़ायदे मे रहा !
ऐसे ही एक स्वास्थ्य शिविर मे एक मरीज़ गंभीर हालत मे मिल गया परिचित था इसलिए पूछ बैठा तो उसने संकोच मे बताया अब क्या बताए, बताने लायक बात नही है ! फिर भी क्या हुआ? भाई साहब हमे बवासीर पाइल्स हो गई थी डॉक्टर ने ऑपरेशन बताया तो करा लिया! पर अब भी एक तकलीफ़ हो गई है! पहले हाजत लगती थी तो पता चल जाता था सो लोटा लेकर मैदान मे चले जाते थे पर अब तो पता नही चलता, कपड़े ही खराब हो जाते हैं! सो दिखाने आए हैं हम हँसी रोक ही रहे थे कि हमारे एक चुलबुले मित्र ने वो कहा जो नही कहना चाहिए था!
वो अपने को रोक नही सका भैय्या तुम कुण्डी ठीक कराने गये थे और डॉक्टर ने दरवाज़े चौखट तक निकल डाले! अरे भयया अब न ही दिखाओ तो बेहतर, नही तो मकान तक निकाल देंगे ये, वो भी हंसा सुनने वाला भी हंसा, हंसते-हंसते वो मरीज़ बोला अरे भय्या अब हमे अच्छा लग रहा है! पता नही वो उस हँसी से ठीक हो गया या उसके शरीर का सिस्टम सुधर गया पर उसने डॉक्टर के पास फिर जाने की हिम्मत तो न की होगी! ऐसे ही एक हमारे मित्र का किस्सा है! वे बेचारे मास्टर थे! अच्छे विचारक व हस्मुख थे! वे शायद ही कभी बीमार पड़े हों! एक बार बुखार चढ़ा तो 3 दिन तक नही उतरा जैसा कि भारत के लोग अपने को आधा डॉक्टर मानते हैं! उन्होने भी स्वयम् इलाज किया! बुखार ने पैर पसार लिए तो एक श्रेडी ऊपर जाकर एक प्राइवेट चिकित्सक, जिन्होने पास मे क्लिनिक खोला था, को दिखा दिया वे ठहरे क्लिनिक धन, कम्पाउण्डर धन, टैक्स धन, लाभ कमाने वाले सो तीन- तीन दिन करके छह दिन उनके निकाल दिए!
इस बीच दो चार तकलीफे और हो गई तो उन्होने अपने प्रयोग बंद करते हुए अल्टीमेटम दे दिया कि हॉस्पिटल मे दिखाओ ! हॉस्पिटल यानी सरकारी अस्पताल इनका नाम ‘हार्स पीटल’ या ‘अश्वताल’ होता तो वो अच्छा रहता! वहाँ जाँच भर्ती व विभिन्न डॉक्टरों नर्सों की देख रेख हुई ! दस दिन उस माहौल मे रहने से वे अब अपनी याददाश्त सी खो बैठे! पेट मे तकलीफें बढ़ गई ! कोई फ़ायडा नही हुआ! ढेरो मिलने वालों से अस्पताल वाले परेशान हो गये! सबकी सलाह एक थी
बहार दिखाओ! ग्यारहवे वे दिन बाहर दिखाने के लिए डॉक्टर ने आदेश दिया! बारहवे दिन
एक दूर के मेडिकल अस्पताल पहुँच गये! मेडिकल अस्पताल जैसा बड़ा नाम है, साफ़ सफाई भी
थी पर खर्च घर बेच दो तो भी कम पड़ जाए, दो दिन तक लगातार कई हजारों के और दस से बीस
मील के चक्कर लगवाकर टेस्ट हुए फिर टेस्ट रिपोर्ट आई! वहां एक विचित्र अनुभव यह भी
रहा की मेडिकल कॉलेज के दस से बीस मील के व्यवसाय में सभी डॉक्टरों के अलग–अलग
चहेते, जांच करने वाले पैथालोजिस्ट रहते हैं! हमें अपने मित्र पर गर्व हुआ!
हमारी पाँच साढ़े-पाँच फ़ुट के
नश्वर देह की जांच का दायरा बढ़ कर दस से बीस मील तक फ़ैल गया! वहां एक बात मित्र को
खटका करती की दिन में दो-तीन बार एक बुज़ुर्ग डॉक्टर कई नौजवान डॉक्टरों को ले कर जबरन
उन्हें घेर लेते तब मेरे मित्र की स्थिती दिश्काशन में पिनो से फसा मेढक जैसे ट्रे
में लेटा अपना पेट चीरते देखता है वैसी हो जाती है कोई हथोदी से तलवे घुटने ठोकता
तो कोई जीभ निकलवा कर मुंह खुलवा कर टार्च से देखता है, जाने क्या देखते थे ! कुछ
स्टेथ स्कोप से शरीर के हर हिस्से को
सुनते, कुछ कागज़ पढ़ते, कुछ लिखते फिर चले जाते! जब यही क्रिया पड़ोसी मरीज़ के साथ
हो रही होती ,हमारे मित्र को तब अच्छा लगता, वहां दिन गुजारते-गुजारते एक दिन उन्हें
झाड-पोछ कर कपडे बदल कर बलि के लिए ले जाने जैसा तैयार किया गया, चलित बेड में
डालकर खतरनाक लाल बत्ती के कमरे में ले गये मित्र तब समझे की कोई ऑपरेशन होना है,
वे उन्होंने दोबारा भी
अनास्थीसिया दिया गया था क्यूंकि वे बेहोश नहीं हो रहे थे! डॉक्टरों ने उनके गुर्दे
की सर्जरी कर दी थी, गुर्दे में कुछ कमी बता दी गई थी! बारह-पन्द्रह दिन बाद
छुट्टी मिली तो किसी मरीज़ ने बताया की आगरा में कोई प्राइवेट चिकित्सक गुर्दे का
नामी डॉक्टर है व विदेशियों के गुरदों तक चीर फाड़ करने का अनुभव है! उसके लिए एक देशी
गुर्दे सुधारना मिनटों का काम है हमारे घर के लोग उसे उस घायल अवस्था में वहां ले
गये उन्होंने दो दिन रखा वा पेट में सुई डालकर कहीं से पौने एक किलो यूरिन निकाला वा
बताया, यह जमा था अब तुम ठीक हो! उनके इस मनोवाज्ञानिक इलाज से मित्र कुछ ठीक हुवे
पर भूलने की बीमारी वा बैठे–बैठे सर हिलाना जारी था घर वाले जो पैसा ले गये थे वह
चूक गये थे सो लौट के बुद्धू घर को आए की तरह परिवार वाले उन्हें घर ले आए घर पर
दो दिन में आधा शहर उनकी हालत पर हंसने आया वा सलाह का ढेर लग गया!
इन्ही सलाह को छानने फटकने
के बाद उनकेगाँव घर के लोगों को पड़ोस के
एक जिले के उन्ही की जात-बिरादरी के एक चिकित्सक का पता चला इन 2 दिनों में नज़र
उतराई से लेकर गन्दा तावीज़ नीम के पत्ते से झाड-फूंक, अलग अलग धर्म वालों का बोतल
के पानी में फूंका मन्त्र युक्त पेय घर को कीलना, कुछ मन्त्र जाप दो चार मंदिरों
में मनौतियाँ, गाँव जाकर एक चबूतरे की परिक्रमा एक आध जडी बूटी वाले की पुडिया आदि
कर्म संपन्न हो चुके दान किये गये, पर मेरे मित्र मास्टर साहब पूरी तरह स्वस्थ
नहीं हो पाए, पड़ोस के बिरादरी भाई डॉक्टर मनोरोग चिकित्सक निकले उन्होंने पूरा केस
अध्ययन किया, फिर इस नतीजे पर पहुंचे की दवाओं के सेवन से गर्मी चढ़ गयी है, लिहाजा
उन्होंने मरीज़ से अकेले में कहा की दवा कोई भी दे उसे खाना नहीं फिर घर वालों से
कहा की तीन दिन कोई दवा नहीं देना सिर्फ ठंडी प्राकृतिक के फल, रस, ग्लूकोस आदि
दिए जाएं यदि ठीक होते तो दवा बंद! कुछ दिन फल आदि देना, एक आप विश्वास करे या न
करे दा बंद होते ही ठन्डे फल रस वा ग्लूकोज ने मेरे मित्र को ठीक कर दिया, वे अब ड्यूटी पर जा रहे
हैं !
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